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विष्णुं॒ स्तोमा॑सः पुरुद॒स्मम॒र्का भग॑स्येव का॒रिणो॒ याम॑नि ग्मन्। उ॒रु॒क्र॒मः क॑कु॒हो यस्य॑ पू॒र्वीर्न म॑र्धन्ति युव॒तयो॒ जनि॑त्रीः॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

viṣṇuṁ stomāsaḥ purudasmam arkā bhagasyeva kāriṇo yāmani gman | urukramaḥ kakuho yasya pūrvīr na mardhanti yuvatayo janitrīḥ ||

पद पाठ

विष्णु॑म्। स्तोमा॑सः। पु॒रु॒ऽद॒स्मम्। अ॒र्काः। भग॑स्यऽइव। का॒रिणः॑। याम॑नि। ग्म॒न्। उ॒रु॒ऽक्र॒मः। क॒कु॒हः। यस्य॑। पू॒र्वीः। न। म॒र्ध॒न्ति॒। यु॒व॒तयः॑। जनि॑त्रीः॥

ऋग्वेद » मण्डल:3» सूक्त:54» मन्त्र:14 | अष्टक:3» अध्याय:3» वर्ग:26» मन्त्र:4 | मण्डल:3» अनुवाक:5» मन्त्र:14


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब वक्ता के विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् ! (उरुक्रमः) बहुत पुरुषार्थवाले आप जैसे (स्तोमासः) स्तुति करनेवाले (अर्काः) पूजा करने योग्य (भगस्येव) ऐश्वर्य्य के तुल्य (कारिणः) करनेवाले विद्वान् लोग (यामनि) प्राप्त होने योग्य मार्ग में (पुरूदस्मम्) बहुत दुःख नाश हुए जिससे उस (विष्णुम्) व्यापक को (ग्मन्) प्राप्त होते हैं और (यस्य) जिसकी (युवतयः) युवावस्था को प्राप्त (ककुहः) बड़ी (पूर्वीः) प्राचीनकाल में वर्त्तमान (जनित्रीः) माताओं का (न) नहीं (मर्धन्ति) नाश करते हैं, वैसे आप वर्त्ताव करो ॥१४॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। जो लोग भगवान् की उपासना करनेवाले ईश्वर की आज्ञा के अनुकूल वर्त्तमान, वे ऐश्वर्ययुक्त होकर नहीं नाश होनेवाली बड़ी लक्ष्मियों को प्राप्त हो दुःख के पार जाकर बड़े सुख को प्राप्त होते हैं ॥१४॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ वक्तृविषयमाह।

अन्वय:

हे विद्वन्नुरुक्रमस्त्वं यथा स्तोमासोऽर्का भगस्येव कारिणो विद्वांसो यामनि पुरुदस्मं विष्णुं ग्मन्। यस्य युवतयो ककुहः पूर्वीर्जनित्रीर्न मर्धन्ति तथा त्वं वर्त्तस्व ॥१४॥

पदार्थान्वयभाषाः - (विष्णुम्) व्यापकम् (स्तोमासः) स्तावकाः (पुरुदस्मम्) पुरूणि बहूनि दुःखानि दस्मान्युपक्षीणानि यस्मात्तम् (अर्काः) पूजनीयाः (भगस्येव) ऐश्वर्यस्येव (कारिणः) कर्त्तुं शीलाः (यामनि) प्रापणीये मार्गे (ग्मन्) गच्छन्ति (उरुक्रमः) बहुपुरुषार्थः (ककुहः) महतीः। ककुह इति महन्ना०। निघं० ३। ३। (यस्य) (पूर्वीः) (न) निषेधे (मर्धन्ति) हिंसन्ति (युवतयः) प्राप्तयौवनाः (जनित्रीः) मातॄः ॥१४॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारः। ये भगवदुपासका ईश्वराज्ञानुकूलवर्त्तमाना भगवन्तो भूत्वाऽहिंसामहतीर्भगवतीः प्राप्य दुःखान्तं गत्वा महत्सुखं प्राप्नुवन्ति ॥१४॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमा व वाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. जे लोक ईश्वराची उपासना करणारे असतात ईश्वराच्या आज्ञेनुसार वागून ऐश्वर्ययुक्त होतात व शाश्वत लक्ष्मी प्राप्त करतात ते दुःख नाहीसे करून सुख भोगतात. ॥ १४ ॥